Thursday, March 29, 2012

मेघवाल ने सपत्नीक बाल तपस्वनी अणचीबाई के दरबार में किए नवरात्री




अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री गोपाराम मेघवाल ने मेघवाल समाज की
आराध्य देवी बाल तपस्वनी श्री अणचीबाई के मंदिर नाडोल पाली में सपत्नीक
नवरात्री स्थापना के उपवास किया। पुजारी श्री हरजी महाराज ने घट स्थापना
के साथ पुजा-अर्चना कर उन्हें पवित्र जल का चरणामृत कराया।

इस अवसर पर श्री प्रमोदपाल सिंह मेघवाल जिला परिषद सदस्य, श्री घीसाराम
बमणिया विकास अधिकारी प.स. देसूरी, शेषाराम मेघवाल, गेनाराम, मोडाराम
भटनागर, भलाराम मोबारसा, ढलाराम मेघवाल ग्राम सेवक सहित समाजबन्धु
उपस्थित थे।

शाम आरती के बाद भजन मालाः श्री मेघवाल शाम की आरती के बाद रात 8बजे तक
भजन माला करने के बाद समाज बन्धुओ के साथ र्वातालाप एवं भजन रस का आनन्द
लेते है।

Monday, March 26, 2012

मेघवाल समाज की पत्र-पत्रिकाएं

मेघवाल बंधु अक्सर पूछते रहते हैं कि अपने समाज की भी कोई पत्रिका हैं क्या? इसकी वजह भी हैं कि समाज के कई बुर्जुगों व बंधुओं ने समय-समय पर पत्रिकाएं तो प्रकाशित की। लेकिन पर्याप्त विज्ञापन अथवा आर्थिक मदद न मिलने से वे अपने मोर्चे पर लम्बे समय तक टिके नहीं रह सकें। फलतः पत्रिकाएं निकलती रहीं और बंद होती रही। लेकिन वर्तमान में जो भी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। उनमें से एक भी पत्रिका अपनी देषव्यापी पहचान बन सकी हैं। जयपुर से ‘उदयमेघ’ का प्रयास ठिक हैं। लेकिन अभी प्रतिनिधि पत्रिका की कमी कोई पत्रिका पूरी नहीं कर सकी हैं। वैसें मेघवाल पत्रकारिता के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो सबसे पहले मेवाड़ मेघवाल मंड़ल के प्रधानमंत्री स्व.भैरूलाल मेघवाल ने ‘दृष्टिकोण’ पत्रिका प्रकाशित कर की थी। यह पत्रिका अब भी प्रकाशित हो रही हैं। हांलाकि इन दिनों मुझे यह कहीं दिखाई नहीं दी हैं। बीकानेर से बुर्जुग प्रेमी साहब दलित समाज की पत्रिका के बतौर ‘हकदार’ निकाल रहें हैं। पिछले दिनों मुझे एक बैठक में जानकारी मिली की,अब इसका कलेवर मेघवाल समाज के परिप्रेक्ष्य में कर दिया गया हैं। मेघवाल समाज के बंधुओं की जानकारी के लिए इन पत्रिकाओं को मंगवाने अथवा इनके बारें में जानकारी करने के लिए नीचे पते दिए जा रही हैं। इसके अतिरिक्त भी कोई पत्रिका निकलती हो,तो मेरे और पाठकों की जानकारी में वृद्धि करने के लिए मेरे ईमेल पर संपर्क किया जा सकता हैं।
मेघवाल समाज की पत्रिकाओं के लिए इन पतों व फोन नं. पर संपर्क करें-
1.श्री बाबूलाल वर्मा,संपादक,उदय मेघ,सी-40,अमरदेवी स्कूल के सामने,मजदूर नगर,अजमेर रोड़,जयपुर,राजस्थान। मोबाइल नं.-9828278574
2.श्री रामनिवास रोजड़े,संपादक-सूत्रकार संकेत,708,गोटू की चाल,मालवा मिल,इन्दौर मध्यप्रदेष। मोबाइल नं.-9303205009
3.श्री पन्नालाल प्रेमी,संपादक-हकदार,बीकानेर,राजस्थान।
4.श्री प्रकाश मेघवाल,संपादक-दृष्टिकोण,मोती चौक,उदयपुर राजस्थान।
इसे ईमेल करें, इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करेंFacebook पर साझा करें1 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक प्रस्तुतकर्ता प्रमोदपाल सिंह मेघवाल

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे....

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे...

श्री भारत भूषण भगत ने यह आलेख मेघयुग को टिप्पणी के रूप में भेजा था। इसे मूल रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा हैं।

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे....यह प्रश्न प्रत्येक मानव समूह करता है और हर बात को अपने पक्ष में देखना चाहता है. हमारी जाति समूह में भी यह प्रश्न सदियों से पूछा जाता रहा है और जानकार लोग अपनी-अपनी जानकारी के अनुसार उत्तर देते आए हैं. माता-पिता, भाई-बहनों, मित्रों, संबंधियों से यह प्रश्न किया जाता है. कई प्रकार की विद्वत्ता और विवेक की जानकारियाँ मिलती हैं.
विकिपीडिया पर संक्षेप में लिखे मेघवाल और उससे लिंक किए गए अन्य शोधपूर्ण विकिपीडिया आलेख बहुत उपयोगी लगे. ज्यों-ज्यों इन्हें देखता गया हाथ में आए सूत्र आख़िरकार मन से उतरने लगे. मन भर गया. इनमें दी गई जानकारी कई जगह इकतरफ़ा है. परंतु कुछ इमानदार टिप्पणियाँ भी मिलीं जो सत्य का प्रतिनिधित्व करती थीं.
आर्यों के आक्रमण से पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता या मोहंजो दाड़ो और हड़प्पा सभ्यता का उल्लेख है जिसके निवासी राजा वृत्रा और उसकी प्रजा थी. यह अपने समय की सब से अधिक विकसित सभ्यता थी जिसके निवासी शांति प्रिय थे और छोटे-छोटे शहरों में बसे हुए थे. कृषि और कपड़ा बुनना उनका मुख्य व्यवसाय था. उस समय की जंगली, हिंसक और खुरदरी आर्य जाति का वे मुकाबला नहीं कर सके और पराजित हुए. उनका बुरा समय शुरू हुआ. इसके बाद जो हुआ उसे दोहराने की यहाँ आवश्यकता नहीं. इतना जान लेना बहुत है कि राजा वृत्रा को वृत्रा असुर, अहिमेघ (नाग), आदिमेघ, प्रथम मेघ, मेघ ऋषि आदि कहा गया. वेदों में ऐसा लिखा है. आगे चल कर उसकी कथा से लेकर असुरों की पौराणिक कथाओं, नागवंश उनके राजाओं और उनके बचे-खुचे (तोड़े मरोड़े गए) इतिहास की बिखरी कड़ियाँ मिलती हैं. उनसे एक तस्वीर बनती ज़रूर नज़र आती है. यह तस्वीर ऐसी है जिसे कोई जाति भाई देखना नहीं चाहेगा. वीर मेघ पौराणिक कथाओं की धुँध में आर्यों के साथ हुए युद्धों में वीरोचित मृत्यु को प्राप्त होते दिखाई देते हैं तथापि आक्रमणकारी आर्यों ने उन्हें वीरोचित सम्मान नहीं दिया. यह सम्मान देना उनकी परंपरा और शैली में नहीं था. असुरों, राक्षसों, नागों (हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष, प्रह्लाद, विरोचन, बाणासुर, महाबलि, रावण असुर, तक्षक, तुष्टा, शेष, वासुकी आदि) के बारे में जो लिखा गया और जो छवियाँ चित्रित की गईं, उनके बारे में सभी जानते हैं. फिर हर युग में जीवन-मूल्य बदलते हैं, इसी लिए ऐसा हुआ. वैसे भी इतिहास में या कथाओं में वही लिखा जाता है जो विजयी लिखवाता है.

इतिहास में उल्लिखित कई राजाओं को मेघवंश के साथ जोड़ कर देखा गया है. वे जिस काल में सत्ता में रहे उसे अंधकार में डूबा युग (dark period) कहा गया या लिख दिया गया कि तत्विषयक जानकारी उपलब्ध नहीं है. यानि इतिहास बदला गया या नष्ट कर दिया गया. ऐसी धुँधली कथाओं और खंडित कर इकतरफ़ा बना दिए गए इतिहास को कितनी देर तक अपनी कथा के तौर पर देखा जा सकता है. अनुचित को देखते जाना अनुचित है. अपनी पुरानी फटी तस्वीर पर खेद जताते जाना और अफ़सोस करना अपने वर्तमान को ख़राब करना है. सच यही है कि समय की ज़रूरत के अनुसार मेघ पहले भी चमकदार मानवीय थे, आज भी निखरे मानवीय हैं. वे पहले भी अच्छे थे, आज भी अच्छे हैं. युद्ध में पराजय के बाद कई सदियों तक जिस घोर ग़रीबी में उन्हें रखा गया उसके कारण उनके मन और शरीर भले ही उस समय प्रभावित हुए हों लेकिन उनकी आत्मा पहले से अधिक प्रकाशित है. अपने मन को ख़राब किए बिनी हम अन्य जातियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर देश की प्रगति के लिए कार्य कर रहे हैं. भविष्य में हमारी और भी सक्रिय भूमिका है.
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करेंFacebook पर साझा करें2 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक प्रस्तुतकर्ता प्रमोदपाल सिंह मेघवाल

आपकी सेवा में.

आप अपनी MEGHWAL SAMAJ ki कोई भी सूचना,संदेश, वैवाहिक, सामाजिक, पारिवारिक या व्यक्तिगत-इस ब्लॉग में नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते हैं।

इसे आपके शहर में ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में कभी भी देखा जा सकता हैं।

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Meghwalo ki falani,vpo-Narlai,
Th.Desuri, Dist.-Pali,
Rajsthan

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E-mail : narayannarlai@gmail.com

Thursday, March 22, 2012

नौ बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया गणपत मेघवाल ने

भरत मेघवाल
पाली.शहर के सरदार पटेल नगर में रहने वाले गणपत मेघवाल ने फुटबाल खेल में अब तक कई उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने नौ बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। मेघवाल का कहना है कि इस खेल के लिए उन्हें उनके पिता पूनमचंद ने प्रेरित किया। 1984 में उन्होंने फुटबाल खेलना शुरू किया था। खेल में बेहतर प्रदर्शन के चलते उन्होंने अब तक 11 बार राज्य प्रतियोगिता में भाग लेकर शानदार प्रदर्शन किया। गणपत की इस खेल में मजबूत पकड़ होने के कारण अधिकतर प्रतियोगिताओं में उन्हें स्थान मिलता रहा। उन्होंने कोटपूतली में 1986 में आयोजित स्कूल स्टेज प्रतियोगिता, राजस्थान स्टेट चैंपियनशिप 1990, बाडमेर, जोधपुर, भरतपुर, भीलवाड़ा, डिडवाना, बूंदी, सवाईमाधोपुर व अजमेर समेत कई जिलों में आयोजित राजस्थान स्टेट सीनियर प्रतियोगिताओं में भाग लिया। मेघवाल वर्तमान में तीन साल से पाली जिला फुटबाल संघ में ज्वाइंट सेक्रेट्री पद संभाले हुए हैं। अब वे विभिन्न स्थानों पर होने वाली प्रतियोगिताओं में टीम लेकर जाते हैं।

इन नेशनल प्रतियोगिता में लिया भाग

उन्होंने उदयपुर में आयोजित तीन राष्ट्रीय प्रतियोगिता, बीकानेर में आयोजित भगवत मेमोरियल फुटबाल प्रतियोगिता में तीन बार, बीकानेर में आयोजित बच्ची गोल्ड कप प्रतियोगिता, गंगानगर में आयोजित दशहरा फुटबाल प्रतियोगिता में भाग लिया। इसी प्रकार गुजरात के बदौड़ा में आयोजित संतोष ट्राफी केंप में चयन हुआ।

ब्लड डोनेशन में भी आगे

गणपत मेघवाल खिलाड़ी होने के साथ ब्लड देने में भी हमेशा आगे रहते हैं, वे समय समय पर आयोजित शिविरों में रक्तदान करते रहते हैं। अब तक वे 60 से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं।

कई बार हुए सम्मानित

रक्तदान करने पर उनको कई बार सम्मानित भी किया गया है। रक्तदान में अव्वल रहने पर वे पूर्व मंत्री लक्ष्मीनारायण दवे व राजेंद्र चौधरी के हाथों सम्मानित हो चुके हैं।

(लेखक श्री भरत मेघवाल दैनिक भास्कर के पाली संस्करण में उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं और यह आलेख दैनिक भास्कर से साभार प्रकाशित किया जा रहा हैं।)
Link-http://www.bhaskar.com/article/RAJ-OTH-1170235-1809596.html