Wednesday, August 1, 2012

मेघवाल समाज के गौत्र

क्र.स. गोत्र
1 आयच
2 आसोपिया
3 आडान्या
4 अरटवाल
5 बङल / बिङला
6 बदरिया
7 बारङा
8 बागेच
9 बाघेला
10 बागराना
11 बजाङ
12 बलाच
13 बामणिया
14 बाणिया
15 बाण्यत
16 बारडा
17 बरी
18 बारुपाल
19 बरवङ
20 बावल्या
21 बावरा
22 बेघङ
23 बेरिया
24 बेरवा
25 भादरु
26 भद्राङ / य़ादव
27 भडसिया
28 बागराना
29 भानाल
30 भटान्या
31 भाटी / भाटीया
32 भटनागर
33 भायलान
34 भियावार
35 भिन्डल / बिडल
36 भोलोद्या
37 बिकुन्दिया
38 बिराईच
39 बोखा / बृजवाल
40 बुङगया
41 बुगालिया
42 चाहिल्या
43 चन्देल
44 छटवाल
45 चूहङा
46 चौहान
47 चूहङा
48 दहिया
49 दानोदिया
50 देऊ
51 देपन
52 देवपाल
53 धणदे
54 धान्धु / धान्धल
55 धाणिया
56 धूमङा
57 ढोर
58 दिवराया
59 ढिय
60 एपा
61 गाडी
62 गन्डेर
63 गांधी
64 गरवा
65 गहलोत /गहलोतिया
66 गेंवा
67 घोटण
68 गोदा
69 गोगलु
70 गोयल
71 गुजरिया
72 गुलसर / गुलसठ
73 गुनपाल
74 हालु
75 हाटेला
76 हेवाल
77 हिंगङा
78 हिंगोलिया
79 ईनाण्या
80 ईणकिया / ईणखिया
81 ईन्दलिया
82 जाम
83 जैपाल
84 जलवाणिया
85 जनागल / जुनागल
86 जतरवाल
87 जावन
88 जायल
89 जोधा
90 जोधावत
91 जोगल
92 जोगचन्द
93 जोगु
94 जोरम्
95 जोया
96 जुईया
97 कङेला
98 कजाङ
99 काला
100 कांटिवाल
101 कर्णावत
102 कटारिया
103 कथिरिया
104 कट्टा
105 खाल्या
106 खाम्भु
107 खंजानिया
108 खारङिया
109 खत्री
110 खीची
111 खिमयादा
112 खिंटोलिया
113 कोचरा / कोचर / केश्वर
114 कोडेचा
115 कुन्नङ
116 लडाना
117 लखटिया
118 लालणेचा
119 लवा / लोहिया / लहवा
120 लिखणिया / लखानी
121 लीलङ
122 लूना
123 लोथिया
124 माचर
125 मंगलेचा
126 मेहरङा
127 महरनया
128 मकवाणा
129 मांगलिया
130 मांगस
131 मरहङ
132 मरवण
133 मेहरङा / मेहरा
134 मेलका
135 मेव
136 मोबारसा
137 मोहिल
138 मोयल
139 मुछा
140 नागोङा
141 निंबङिया
142 पङिहार
143 पलास्या
144 पालङिया
145 पन्नु
146 पंवार / परमार
147 पारंगी
148 पङिहार
149 पारखी
150 पातलिया
151 पतीर
152 पावटवाल
153 पिपरलिया
154 पूनङ
155 राडिया
156 राहिया
157 राणवा
158 रांगी
159 राठी
160 राठोङिया / राठौङ
161 रोहलन / रोलन
162 रोलिया
163 सामर्या
164 संडेला
165 सांखला
166 सीमार
167 सेजु
168 शपूनिया / छपूनिया
169 शेवल
170 शोर्य
171 सिधप
172 सिंडार्या
173 सिंगङा
174 सोडा / सोडिया
175 सोलंकी
176 सोनेल
177 सूटवाल
178 सुमारा
179 सुणवाल
180 तालपा
181 तनाण
182 तंवर्
183 तिङदिया
184 टुंटिया
185 तुर्किया
186 वर्मा
साभार-राजस्थान मेघवाल परिषद की वेबसाईट
http://www.meghwalparishad.com

Friday, May 11, 2012

राजस्थान मेघवाल समाज-एक परिचय


हम मेघवाल हैं मेघवाल रहेंगे-आर.पी. सिंह



मेघवंश समाज अनेक टुकड़ों में बंटा हुआ है। ये अनेक टुकड़े अपने को एक दूसरे से अलग समझने लगे तथा एक दूसरे से ऊंचा बनने की होड़ में अपनी संगठन शक्ति खो बैठे हैं। मेघवंशी,भांबी,बलाई,सूत्रकार,जाटा,मारू, बुनकर,सालवी,मेघ,मेघवाल,मेघरिख,चांदौर,जाटव,बैरवा इत्यादि पर्यायवाची उपनामित जातियां स्वयं को एक दूसरे से अलग एवं ऊंचा मानकर आपस में लड़ती रहती हैं।

यदि ये सब उपजातियां केवल एक जाति के रूप में संगठित हो जाएं तो वे अपने जीवन में एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं। ये सोच उभरी तो इसके क्रियान्वयन के लिए अनेक शुभचिंतकों व गुरुओं ने समाज को केवल एक मेघवाल नाम देकर संगठित करने का प्रयास किया, जिसके सार्थक परिणाम सामने आए। 12 सितंबर 1988 को राजस्थान मेघवाल समाज नाम की इस संस्था का पंजीकरण कराया गया।

प्रारंभिक संस्थापकों ने समाज को जोडऩे का खूब प्रयास किया। लेकिन इनकी अन्य कार्याे में व्यस्तता के कारण यह संस्था मृतप्रायः हो गई। इस संस्था में प्राण फूंकने के उद्देश्य से 27 अप्रैल 2004 को जयपुर में बैठक आयोजित की गई। संस्था का संरक्षक श्री रामफल सिंह को बनाया गया। उद्देष्य हैं कि उपजातियां अपने आपस के वर्ग भेद मिटाकर पुनः अपने मूल मेघवंश रूप मेघवाल नाम को स्वीकारें और अपनी जाति पहचान को संगठित,सृदृढ़ और अखंड बनाए रखने के लिए अब मेघवाल नाम के नीचे एक हो जाएं।

समाज के कुछ लोग इसका विरोध करते हैं। उनका कहना है कि बलाई,बैरवा,जाटव इत्यादि मेघवाल क्यों बनें। इस बारें में संरक्षक श्री रामफल सिंह का सुझाव है कि जब ब्राह्मण समाज में 52 उपनामित जातियां हैं। लेकिन वे सभी सर्व ब्राह्मण महासभा के बैनर के नीचे बैठकर समाज हित में चिंतन कर सकते हैं। एकता के दावों के साथ अपने अधिकार की मांग करते हैं तो हम एक बैनर तले आने में संकोच क्यों करते हैं।

गुर्जर समाज का एक और उदाहरण देखिए। एकता की बात आई तो गुर्जर समाज ने उपजाति तो क्या धर्म को भी भुला दिया और क्रिकेट खिलाड़ी अजहरूद्दीन,फिल्म एक्टर अक्षय कुमार और दौसा से चुनाव लड़े कमर रब्बानी चौची तक को गुर्जर भाई माना। कोई भी लड़ाई दिमाग से लड़ी जाती है।

यदि दिमाग के स्तर पर हार जाता है तो वह मैदान में कोई लड़ाई नहीं जीत सकता। हमारी अब तक की दीन हीनता और दुरावस्था का कारण ही यह रहा कि हम एकजुट नहीं रहे। यानि हम दिमाग स्तर पर पराजित रहे हैं। क्यों नहीं हम जाति को ही हथियार बनाकर अपने अधिकारों के लिए सार्थक ढंग से लड़ाई लड़ें। इसके लिए मेघवंश की एकता मजबूती और ताकत दे सकती है। हम मेघवाल हैं मेघवाल रहेंगे।

संपर्क-

श्री आर.पी. सिंह, संरक्षक, राजस्थान मेघवाल समाज (रजि. संख्या 224/जय/88-89)73, अरविंद नगर, सी,बी,आई. कालोनी, जगतपुरा, जयपुर. मो. 9413305444, 0141-2750660
श्री झाबर सिंह, बी-31, अध्यक्ष, राजस्थान मेघवाल समाज (रजि.), कैंप कार्यालय, संजय कालोनी, नेहरू नगर, आरपीए के सामने, जयपुर, मो. 9414072495, 9829058485

Saturday, April 21, 2012

मेघवाल समाज ने लिखे सामूहिक विवाह के सावे

देसूरी,17 अप्रेल। कोट सोलंकियान ग्राम में स्थित हरचंदपीर आश्रम में आयोजित होने वाले मेघवाल समाज के सामूहिक विवाह सम्मेलन को लेकर सावे लिखे गए। श्री मारवाड़ मेघवाल सेवा संस्थान देसूरी शाखा द्वारा आगामी एक मई को आयोजित हो रहे इस आयोजन के दौरान कुल इक्यावन जोड़ें परिणय सूत्र में बंधेगें। कोट सोलंकियान ग्राम में स्थित हरचंदपीर आश्रम में पीर गुलाबदासजी महाराज एवं गादाणा बायोसा मंदिर के प्रमुख प्रतापराम गोयल के सानिध्य व जिला परिषद सदस्य प्रमोदपाल सिंह मेघवाल की अध्यक्षता में आयोजित इस सावा लेखन कार्यक्रम का शुभारंभ विनायक पूजन के साथ हुआ। इसी के साथ अलखजी,रामदेवजी एवं हरचंदपीर की पूजा अर्चना एवं जैकारों व नगाड़ो,ढ़ोल थाली की गूंज के साथ सावे लिखे गए। इस दौरान महिलाओं द्वारा गाये गए मंगल गीतों के साथ कोट सोलंकियान परगने के दस ग्रामों की ओर से जोड़ो के परिजनों को वर-वधु की बड़ी सहित अन्य वैवाहिक सामग्री का वितरण भी किया गयां संस्थान की देसूरी शाखा के अध्यक्ष फूसाराम माधव ने बताया कि विवाह समारोह के दौरान 108 कलश यात्रा,घोड़ो और हाथी के साथ बंदोली आयोजन होगा। बैठक में केन्द्रीय संस्थान के पदाधिकारी लक्ष्मण बेगड़,मोहनलाल भाटी,भंवरलाल कोलर,सकाराम दहिया,संस्थान की देसूरी शाखा के उपाध्यक्ष एड़वोकेट श्रीपाल मेघवाल,विनोद मेघवाल,रतन भटनागर,प्रेम भटनागर,पूर्व जिला परिषद सदस्य मोतीलाल परिहार,चिरपटिया सरपंच चौथाराम,मगरतलाव की पूर्व सरपंच श्रीमती छगनीदेवी,दलित नेता बस्तीमल सोनल,भंवरलाल जोजावर,विवाह समारोह समिति के पदाधिकारी पनोता से भलाराम मोबारसा,किकाराम इकरिया,दौलाराम मोबारसा,तेजाराम इकरिया,कोट सोलंकियान से जालाराम चौहान,वीरमराम मेसंड़,,रूपाराम परमार,नया गांव से वरदाराम,जीवाराम चौहान,कोलर से मांगीलाल पंवार,किकाराम,शंकरलाल भोपा,मोहनलाल पंवार,मगरतलाव से पुकाराम परमार,मांगीलाल मगरतलाव,गुड़ा गोपीनाथ से शंकरलाल,गुड़ा दुर्जन से सवाराम,मेवीखुर्द से डूंगाराम व सुखाराम तंवर,सोनाराम,उदाराम सहित हजारों की संख्या में मेघवाल समाज के लोग मौजूद रहें।

Thursday, March 29, 2012

मेघवाल ने सपत्नीक बाल तपस्वनी अणचीबाई के दरबार में किए नवरात्री




अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री गोपाराम मेघवाल ने मेघवाल समाज की
आराध्य देवी बाल तपस्वनी श्री अणचीबाई के मंदिर नाडोल पाली में सपत्नीक
नवरात्री स्थापना के उपवास किया। पुजारी श्री हरजी महाराज ने घट स्थापना
के साथ पुजा-अर्चना कर उन्हें पवित्र जल का चरणामृत कराया।

इस अवसर पर श्री प्रमोदपाल सिंह मेघवाल जिला परिषद सदस्य, श्री घीसाराम
बमणिया विकास अधिकारी प.स. देसूरी, शेषाराम मेघवाल, गेनाराम, मोडाराम
भटनागर, भलाराम मोबारसा, ढलाराम मेघवाल ग्राम सेवक सहित समाजबन्धु
उपस्थित थे।

शाम आरती के बाद भजन मालाः श्री मेघवाल शाम की आरती के बाद रात 8बजे तक
भजन माला करने के बाद समाज बन्धुओ के साथ र्वातालाप एवं भजन रस का आनन्द
लेते है।

Monday, March 26, 2012

मेघवाल समाज की पत्र-पत्रिकाएं

मेघवाल बंधु अक्सर पूछते रहते हैं कि अपने समाज की भी कोई पत्रिका हैं क्या? इसकी वजह भी हैं कि समाज के कई बुर्जुगों व बंधुओं ने समय-समय पर पत्रिकाएं तो प्रकाशित की। लेकिन पर्याप्त विज्ञापन अथवा आर्थिक मदद न मिलने से वे अपने मोर्चे पर लम्बे समय तक टिके नहीं रह सकें। फलतः पत्रिकाएं निकलती रहीं और बंद होती रही। लेकिन वर्तमान में जो भी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। उनमें से एक भी पत्रिका अपनी देषव्यापी पहचान बन सकी हैं। जयपुर से ‘उदयमेघ’ का प्रयास ठिक हैं। लेकिन अभी प्रतिनिधि पत्रिका की कमी कोई पत्रिका पूरी नहीं कर सकी हैं। वैसें मेघवाल पत्रकारिता के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो सबसे पहले मेवाड़ मेघवाल मंड़ल के प्रधानमंत्री स्व.भैरूलाल मेघवाल ने ‘दृष्टिकोण’ पत्रिका प्रकाशित कर की थी। यह पत्रिका अब भी प्रकाशित हो रही हैं। हांलाकि इन दिनों मुझे यह कहीं दिखाई नहीं दी हैं। बीकानेर से बुर्जुग प्रेमी साहब दलित समाज की पत्रिका के बतौर ‘हकदार’ निकाल रहें हैं। पिछले दिनों मुझे एक बैठक में जानकारी मिली की,अब इसका कलेवर मेघवाल समाज के परिप्रेक्ष्य में कर दिया गया हैं। मेघवाल समाज के बंधुओं की जानकारी के लिए इन पत्रिकाओं को मंगवाने अथवा इनके बारें में जानकारी करने के लिए नीचे पते दिए जा रही हैं। इसके अतिरिक्त भी कोई पत्रिका निकलती हो,तो मेरे और पाठकों की जानकारी में वृद्धि करने के लिए मेरे ईमेल पर संपर्क किया जा सकता हैं।
मेघवाल समाज की पत्रिकाओं के लिए इन पतों व फोन नं. पर संपर्क करें-
1.श्री बाबूलाल वर्मा,संपादक,उदय मेघ,सी-40,अमरदेवी स्कूल के सामने,मजदूर नगर,अजमेर रोड़,जयपुर,राजस्थान। मोबाइल नं.-9828278574
2.श्री रामनिवास रोजड़े,संपादक-सूत्रकार संकेत,708,गोटू की चाल,मालवा मिल,इन्दौर मध्यप्रदेष। मोबाइल नं.-9303205009
3.श्री पन्नालाल प्रेमी,संपादक-हकदार,बीकानेर,राजस्थान।
4.श्री प्रकाश मेघवाल,संपादक-दृष्टिकोण,मोती चौक,उदयपुर राजस्थान।
इसे ईमेल करें, इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करेंFacebook पर साझा करें1 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक प्रस्तुतकर्ता प्रमोदपाल सिंह मेघवाल

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे....

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे...

श्री भारत भूषण भगत ने यह आलेख मेघयुग को टिप्पणी के रूप में भेजा था। इसे मूल रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा हैं।

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे....यह प्रश्न प्रत्येक मानव समूह करता है और हर बात को अपने पक्ष में देखना चाहता है. हमारी जाति समूह में भी यह प्रश्न सदियों से पूछा जाता रहा है और जानकार लोग अपनी-अपनी जानकारी के अनुसार उत्तर देते आए हैं. माता-पिता, भाई-बहनों, मित्रों, संबंधियों से यह प्रश्न किया जाता है. कई प्रकार की विद्वत्ता और विवेक की जानकारियाँ मिलती हैं.
विकिपीडिया पर संक्षेप में लिखे मेघवाल और उससे लिंक किए गए अन्य शोधपूर्ण विकिपीडिया आलेख बहुत उपयोगी लगे. ज्यों-ज्यों इन्हें देखता गया हाथ में आए सूत्र आख़िरकार मन से उतरने लगे. मन भर गया. इनमें दी गई जानकारी कई जगह इकतरफ़ा है. परंतु कुछ इमानदार टिप्पणियाँ भी मिलीं जो सत्य का प्रतिनिधित्व करती थीं.
आर्यों के आक्रमण से पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता या मोहंजो दाड़ो और हड़प्पा सभ्यता का उल्लेख है जिसके निवासी राजा वृत्रा और उसकी प्रजा थी. यह अपने समय की सब से अधिक विकसित सभ्यता थी जिसके निवासी शांति प्रिय थे और छोटे-छोटे शहरों में बसे हुए थे. कृषि और कपड़ा बुनना उनका मुख्य व्यवसाय था. उस समय की जंगली, हिंसक और खुरदरी आर्य जाति का वे मुकाबला नहीं कर सके और पराजित हुए. उनका बुरा समय शुरू हुआ. इसके बाद जो हुआ उसे दोहराने की यहाँ आवश्यकता नहीं. इतना जान लेना बहुत है कि राजा वृत्रा को वृत्रा असुर, अहिमेघ (नाग), आदिमेघ, प्रथम मेघ, मेघ ऋषि आदि कहा गया. वेदों में ऐसा लिखा है. आगे चल कर उसकी कथा से लेकर असुरों की पौराणिक कथाओं, नागवंश उनके राजाओं और उनके बचे-खुचे (तोड़े मरोड़े गए) इतिहास की बिखरी कड़ियाँ मिलती हैं. उनसे एक तस्वीर बनती ज़रूर नज़र आती है. यह तस्वीर ऐसी है जिसे कोई जाति भाई देखना नहीं चाहेगा. वीर मेघ पौराणिक कथाओं की धुँध में आर्यों के साथ हुए युद्धों में वीरोचित मृत्यु को प्राप्त होते दिखाई देते हैं तथापि आक्रमणकारी आर्यों ने उन्हें वीरोचित सम्मान नहीं दिया. यह सम्मान देना उनकी परंपरा और शैली में नहीं था. असुरों, राक्षसों, नागों (हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष, प्रह्लाद, विरोचन, बाणासुर, महाबलि, रावण असुर, तक्षक, तुष्टा, शेष, वासुकी आदि) के बारे में जो लिखा गया और जो छवियाँ चित्रित की गईं, उनके बारे में सभी जानते हैं. फिर हर युग में जीवन-मूल्य बदलते हैं, इसी लिए ऐसा हुआ. वैसे भी इतिहास में या कथाओं में वही लिखा जाता है जो विजयी लिखवाता है.

इतिहास में उल्लिखित कई राजाओं को मेघवंश के साथ जोड़ कर देखा गया है. वे जिस काल में सत्ता में रहे उसे अंधकार में डूबा युग (dark period) कहा गया या लिख दिया गया कि तत्विषयक जानकारी उपलब्ध नहीं है. यानि इतिहास बदला गया या नष्ट कर दिया गया. ऐसी धुँधली कथाओं और खंडित कर इकतरफ़ा बना दिए गए इतिहास को कितनी देर तक अपनी कथा के तौर पर देखा जा सकता है. अनुचित को देखते जाना अनुचित है. अपनी पुरानी फटी तस्वीर पर खेद जताते जाना और अफ़सोस करना अपने वर्तमान को ख़राब करना है. सच यही है कि समय की ज़रूरत के अनुसार मेघ पहले भी चमकदार मानवीय थे, आज भी निखरे मानवीय हैं. वे पहले भी अच्छे थे, आज भी अच्छे हैं. युद्ध में पराजय के बाद कई सदियों तक जिस घोर ग़रीबी में उन्हें रखा गया उसके कारण उनके मन और शरीर भले ही उस समय प्रभावित हुए हों लेकिन उनकी आत्मा पहले से अधिक प्रकाशित है. अपने मन को ख़राब किए बिनी हम अन्य जातियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर देश की प्रगति के लिए कार्य कर रहे हैं. भविष्य में हमारी और भी सक्रिय भूमिका है.
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Rajsthan

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